आधुनिक विश्व में स्वामी विवेकानंद के विचारों की प्रासंगिकता

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मुझे गर्व है कि में एक ऐसे धर्म का हिस्सा हूं जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है”

उपरोक्त शब्द आज भी उतने ही प्रासंगिक है जितने सौ वर्ष पहले थे। स्वामी विवेकानंद उस सनातन परंपरा के विचारक थे जो अपने अंदर कई विचारो और संस्कृतियों को समेटे हुई है और इसके बावजूद युगों युगों से निरंतर अग्रसर है। स्वामी विवेकानंद इसी परंपरा के आधुनिक उद्भोधक है। स्वामी विवेकानंद आज भी विश्व में सबसे सशक्त विचारक माने जाते है, जिन्होंने न सिर्फ वेदांत दर्शन को पूरी दुनिया में फैलाने का काम किया बल्कि पूरे विश्व को वो रास्ता दिखाया जिसपर चलकर व्यक्ति, समाज और राष्ट्र अपनी गौरवगाथा लिख सकता है। उनके विचार किसी एक व्यक्ति, समुदाय पर केंद्रित नही थे क्योंकि उन्होंने हमेशा सार्वभौमिकता पर बल दिया। इसी सार्वभौमिकता के कारण उनके विचार जितने प्रासंगिक कल थे उतने ही आज भी है और उतने ही कल भी रहेंगे। उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर उन्हें याद करते हुए ये जानना और समझना जरूरी है कि स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व और विचार क्यों आज भी सार्थक और प्रासंगिक है। 

एक ऐसे समय जब भारत देश औपनिवेशिक शासन के दमन के चक्र में पिसकर अपनी अस्मिता और आत्मसम्मान को खोता जा रहा था उस समय विवेकानंद ने न सिर्फ लोगों को आत्मसम्मान और स्वाभिमान की दीक्षा दी बल्कि धर्म, जाति, वर्ग और वर्ण की सीमाओं से उठकर एक होने की प्रेरण दी। ये वो समय था जब देश सांस्कृतिक पुनर्जागरण के दौर से गुजर रहा था  और स्वामी विवेकानंद इसके एक अग्रदूत थे। स्वामी विवेकानंद ने जब ये उद्घोष किया कि “गर्व से कहो मैं हिंदू हूं” भारतीय समाज को ये हौसला दिया कि वो अपनी संस्कृति और अपने धर्म को लेकर गौरवान्वित महसूस कर सके और औपनिवेशिक शासन से मिली हीनभावना से बाहर निकलकर एक सशक्त राष्ट्र और संगठित समाज की नींव रख सके। स्वामी विवेकानंद ने ही सर्वप्रथम भारतीय संस्कृति और दर्शन को विश्व पटल पर प्रसिद्धि दिलाई जिसने विश्व भर के लोगों की   भारत और उसकी संस्कृति को लेकर सोच को बदल कर रख दिया। ये स्वामी विवेकानंद जी की ही प्रेरणा थी कि भारत में हिंदुओ को संगठित करने की मुहिम चली थी जिसमे दलितों, महिलाओं, गरीबों और वंचितों को भी बराबर का स्थान मिला। उनके लिए नर सेवा ही नारायण सेवा थी, और समाज की सेवा हर इंसान में बसे ईश्वर की सेवा थी। समाज में फैली असमानता और भेदभाव से स्वामी जी का हृदय दुःख और निराशा से भर गया और देश को ऊपर उठाने के लिए वंचितों और दलितों के आंतरिक और आत्मिक सशक्तिकरण की बात कही। सालो के दमनकारी औपनिवेशिक शासन के कारण भारतीयों में इच्छाशक्ति की कमी और सुस्ती देखकर   भारतीय युवाओं को संबोधित किया और उन्हें साहसी बनने, निष्क्रियता को दूर करने और अपनी दरिद्रता के कारणों पर काबू पाने के लिए प्रेरित किया। स्वामी विवेकानंद जितने आध्यात्मिक थे उतने ही राष्ट्रवादी थे और देश के विकास के लिए उन्होंने युवाओं को अपने भाग्य का निर्माता स्वयं बनने और स्वावलंबन की बात कही थी।  

१८९३ की विश्व धर्म सम्मेलन में उन्होंने सार्वभौमिक धर्म की अवधारणा रखी थी जिसमे सभी धर्मो को व्यवहारिक वेदांत के छत्र में लाया जा सके बिना किसी धर्म को निरस्त या तिरस्कृत किए। वो मानते थे कि सत्य और ईश्वर के कई अलग मार्ग है और हर मार्ग अंततः एक ही लक्ष्य को साधता है। अगर ये दुनिया धर्म, वर्ग के आधार पर लड़ती रहेगी तो इंसान के अंदर की दिव्यता हमे कभी नजर नहीं आ पाएगी। सभी के साथ सद्भाव, सहिष्णुता और निस्वार्थ सेवा, समावेशिता और समानता का संदेश ही मानवता को 21वीं सदी में उभरती समस्याओं को हल करने की ओर ले जा सकता। स्वामी जी ने दुनिया को आध्यात्मिक मानवतावाद का संदेश दिया जो आज भी समुदायों और राष्ट्रों को एक दिशा में ले जाने के लिए जरूरी है। 

स्वामी विवेकानंद ने उपनिषदों में निहित “वसुधैव कुटुंबकम्” के सूत्र पर चलते हुए वैश्विक सौहार्द की अवधारणा रखी।  विवेकानंद जी ने धर्म को लोगों और ईश्वर को जोड़ने की कड़ी माना था जो इंसान को आध्यात्मिक अनुभूति भी दे और व्यवहारिक अभिव्यक्ति भी। विवेकानंद ने स्पष्ट रूप से कहा है कि “धर्म को सामाजिक कानून बनाने और प्राणियों के बीच अंतर पर जोर देने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि इसका उद्देश्य और लक्ष्य ऐसी सभी कल्पनाओं और विकृतियों को मिटाना है।” उनका मानना था कि  धर्म को किसी मंदिर मस्जिद या ग्रंथो या संगठनों में ढूंढने की जगह अपने भीतर उसकी आत्मिक तलाश करनी चाहिए जो इंसान के आध्यात्मिक उन्नति में सहायक बन सके। उनके संदेश आधुनिक विश्व और आधुनिक भारतीय राष्ट्र को एक मजबूत आधार देने में सक्षम हैं। 

स्वामी विवेकानंद  ने एक सशक्त राष्ट्र के आधार के तौर पर देश की स्त्रियों के विकास की पहल की, जो उनकी सामाजिक सजगता और उनके प्रगतिशील दृष्टिकोण को दर्शाती है। उन्हें कहा था कि  “जब तक महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं होगा, तब तक दुनिया का कल्याण संभव नहीं है।” एक ऐसे समय जब बड़े बड़े समाज सुधारक भी महिला उत्थान और शिक्षा को बहुत महत्त्व नहीं देते थे और जब भारत में स्त्री साक्षरता ५ प्रतिशत से भी कम थी, उस समय विवेकानंद ने न केवल स्त्रियों की शिक्षा पर बल दिया था बल्कि उन्हें आधुनिक विज्ञान और कौशल प्रशिक्षण देने की भी वकालत की थी।  

स्वामी विवेकानंद के चिंतन का प्रमुख केंद्र बिंदु देश के युवा थे जो राष्ट्र को बदलने का सामर्थ्य भी रखते है और समाज की सेवा का हौसला भी। लेकिन ये तभी संभव है जब देश के युवाओं का मौलिक मार्गदर्शन हो और वो हर तरह से देश की सेवा करने के लिए प्रतिबद्ध और समर्पित हो। स्वामी जी मानते थे कि देश का भविष्य उसके युवाओं की बुद्धिमत्ता, रचनात्मकता और क्षमता पर निर्भर करता है। वे चाहते थे कि शिक्षा भारत के आदर्शवाद और आध्यात्मिकता को पश्चिमी दक्षता और तर्क के साथ जोड़कर ‘जीवन-निर्माण, मानव-निर्माण और चरित्र-निर्माण” के विचारो को आत्मसात करे। उन्होंने युवाओं के लिए जो मार्ग तैयार किया था उसका उद्देश्य केवल उन्हें नौकरी करने के लिए तैयार करना नही था बल्कि उनका समूल विकास करना था। उन्होंने पश्चिम की उपयोगितावादी शिक्षा नीति की आलोचना की थी जो केवल इंसान को मशीन बनाने का प्रशिक्षण देती है। आज के युवा के लिए ये समझना जरूरी है कि उनका लक्ष्य इससे कहीं ऊपर है और वो लक्ष्य स्कूली या कॉलेज की शिक्षा से पूर्ण होने वाला है नही है। इसके लिए जरूरी है कि इंसान अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ा रहे, अपने नैतिक मूल्यों का सम्मान करे और अपने भीतर समरसता और आध्यात्मिक चेतना के बीज अंकुरित करे। 

स्वामी विवेकानंद का जीवन और विचार दुनिया के हर उस व्यक्ति के लिए प्रासंगिक है जो देश और दुनिया की सेवा करने के लिए प्रतिबद्ध है। स्वामी विवेकानंद ने दुनिया को मानव निर्माण की जो प्रेरणा दी उसे आज भी कई संगठन उपयोग में ला रहे है और मनुष्य निर्माण से राष्ट्र के परम वैभव के मार्ग पर अग्रसर है। स्वामी विवेकानंद उन महापुरूषों में से है जिनके विचार तब तक सार्थक रहेंगे जब तक कि ये देश विद्यमान है, समाज विद्यमान है, हिंदू धर्म विद्यमान है और भारतीय संस्कृति विद्यमान है। 

Authors

The article is written by Ms. Hemangi Sinha (Project Head) and Santosh Kumar (Project Associate), both affiliated with the World Intellectual Foundation.

The article also featured in Panchjanya, a Hindi weekly magazine - https://panchjanya.com/2024/07/04/342291/bharat/swami-vivekananda-thoughts-in-the-modern-world/

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